Monday 13 August 2012

मै जिन्दा हूँ

साँसों का आना जाना ही जीवन है
तो हाँ मै जिन्दा हूँ ...

लबों का मुस्कुराना ही गर हँसी है
तो हाँ मै खुश हूँ ...

महक दिल जलने की गर खुशबू है
तो हाँ मै गुलशन हूँ ...

ढहर जाना ही गर मेरा मुकद्दर है
तो हाँ मै मंज़िल हूँ ...

खुदी को रोंदना गर मेरी फितरत है
तो हाँ मै ज़ालिम हूँ ...

साँसों का आना जाना ही जीवन है
तो हाँ मै जिन्दा हूँ ...

आने वाला है .....

सब दुःख हरनी मंगन करनी
वो आनेवाला है ......

सबको नाच नचाने
वो आने वाला है ....

बंसी बजैया गौ चरैया
आने वाला है .....

मन को भाने मीत बनाने
वो आने वाला है .....

सब मिलकर मचाओ धूम
वो आने वाला है ......

नन्द का लाला मुरलीमनोहर
आने वाला है .......

झाँकता एक साया ,,,

भूले ही कभी कोई इस घर तक आया होगा
आवाज़ लगाई होगी दरवाज़ा खटखटाया होगा
उन दस्तकों से कोई जवाब ना पाया होगा
मायूस वो फिर अपने रास्ते लौट आया होगा

इस घर में रहती तन्हाई का आलम-ए-गम
उस अंजान के कदमों से वाबस्दा नहीं होगा
यूँ तो खिड़कियों से रोज़ झाँकता एक साया (बाहर को)
जाने किस चेहरा-ए-खास को पहचानता होगा ........(इन्दु लडवाल)

अंतर-आत्मा

रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

आंधियां चलती रहीं
तूफान सा आता राह
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

उस शोर का पीछा भी किया
हाथ कुछ नहीं मेरे आया
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा .......

आसमान में दूर कहीं
एक कोना गरजता रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

जाने क्या था उसकी बात में
मैं सोच में डूबी रही
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

अँधेरों में दूर सदाएँ आती
रहीं दिल खामोश रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

कुछ चटकी दीवारें सी
कुछ भूला सा एहसास रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ........(इन्दु लडवाल)

थामा है हाथ तेरा..

अन्जाने रास्तों पर
चलने का मुझको डर है
थामा है हाथ तेरा
रस्ता गम-ए-नज़र है.......

मेरे महबूब किस नाम
से करूँ बयाँ तुझको
तू तो हर चीज़ में
हर शख्स में समाया है......

अब तो ख्वाबों की
जरुरत भी नहीं लगती
सुबह से शाम तक
तू मेरा हमसाया है........ (इन्दु लडवाल)

बूँदों की तरहा

कभी तुम भी चले आया करो
सावन की बूँदों की तरहा
भीगा दो तन मिटा दो
विरहा की अग्नि तपाती है ..

कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये ....

कभी कभी यूँ ही
दिल खाली रखना चाहिये .......

कोई नश्तर-ए-दुश्मनी
चुभा जाता है कभी
तो कोई प्यार से
ज़ख्म भर जाता है
ऐसे रिश्तों से दूर रहना चाहिये
कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये ....

वक्त नहीं मिलता
खुद को सोचने का
और कभी बेवक्त ही
तन्हाइयाँ घेर लेती हैं
ऐसे लम्हों से दूर रहना चाहिये
कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये ...

रो रो के कभी हमने
ऑंखें सुजाई हैं
कभी हँसते हँसते
दर्द की पीड आई है
ऐसे जस्बातों से दूर रहना चाहिये
कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये .......(इन्दु लडवाल)

रुके रुके से कदम ...

ये रुके रुके से कदम तेरे
हाय!
क्या गज़ब कर जाएँगे
पास भी ना आएंगे ये
दूर ही ना ये जाएँगे

ज़र से अठखेलियाँ ना कर
बेमौत ही मर जाएँगे
खुशी झलक ना पायेगी
ना आँसू ही बहा पाएँगे

है प्यार भी अनोखा तेरा
ना जीने दे ना मरने दे
कुछ सुकूं मिला हमें
कभी बेकरारी पाएँगे ..........(इन्दु लडवाल)

कान्हा की मुरली ...

कान्हा की मुरली बाजी है
मस्त भये सब गोपीजन
छोड़ झाड काम आपनो
सब तेरे पाछे लागी हैं

रूप अनंत हैं कृष्णा के
हाथों में मुरली साजी है
तेरा मेरा नाता जाने किस
जुग हम संगी साथी हैं

आरती गाऊँ तिलक लगाऊं
तू मंद मंद मुस्काए है
क्या जाने क्या सोचे तू
दुनिया पागल पीछे है

तेरी मेरी बातें हैं ना
राधा है ना मीरा है
हो प्राण-प्यारी मन-हरनी
हम दोनों हमराज़ हैं

जय श्री कृष्णा .....(इन्दु लड्वाल)

जख्म-ए-याद

मोहब्बत में अगर ये डर भी ना हुआ,
तो क्या रह जायेगा तेरे मेरे दरमियाँ,
याद आती रहे दिल दुखाती रहे,
हरा सा रहे ये जख्म-ए-यादों का निशाँ ...

मेरा नन्दकिशोर ......

गोकुल की गलियों में
वृन्दावन की गलियों में
मथुरा की नगरी में
कर गया शोर
वो तो भागा भागा भागा
मेरा नन्दकिशोर ......

 अखियन से जादू कर गयो रे
मन बैरागी कर गयो रे
दुनिया से मोह छुडायो
वो तो भागा भागा भागा
मेरा नन्दकिशोर ......

काउ की मटकी फोड़ गयो रे
काउ को माखन खा गयो रे
भूख अनंत मेरे प्रभु की
वो तो भागा भागा भागा
मेरा नन्दकिशोर ......

ब्रज की गोपियों से खेलत है
मन को बड़ा ये मोहत है
है तो बड़ा ये झलिया रे
वो तो भागा भागा भागा
मेरा नन्दकिशोर ......

इनकी पाछे दुनिया सारी
ये दुनिया में सबसे आगे
सबको नाच नचायो रे
वो तो भागा भागा भागा
मेरा नन्दकिशोर ...... ......(इन्दु लडवाल)

सुन ले अरज मेरी ....

बंसी की धुन सुन-सुन मै बावरी भई,
सुध-बुध सब बिसरा मैं काँ कू गयी

सब पाछे तेरे जे गोपियाँ पगली भई
काम नाही कछु बस तेरो धुन लगो

फिर आज तू आजा गोकुल अपने
सब मिलकर रास रचावेंगे प्रभु

हट ना करियो जल्दी आईयो
रस्ता सब मिल देखेंगे प्रभु .....(इन्दु लडवाल)

प्यार की परिभाषा ?????

क्या तितलियों के रंग में
डूब जाने का मन करता है ?
पंछियों की तरहा दूर आकाश
में उड़ने लगती हैं ख्वाइशें ?

 मैं को जानती नहीं मैं
और उसमे खो जाती हूँ ?
लब मेरे हिलते हैं और
बातें बस उसकी होती हैं ?

बारिश की बूँदें गिरतीं हैं सर्द
फिर शोले बन जाती हैं ?
बदन मेरा होता है पर
महक उसकी आती है ?

बिना कहे उसके क्या
मै सब समझ गयी ?
क्या कोई शब्द ज़रुरी
नहीं है बयाँ करने को ?

बिना संगीत मेरे कदम
झूम से क्यूँ गए ?
बिना बात ही तेरे नाम
से ऑंखें क्यूँ शरमाई हैं ?

ये भी क्या बात हुई, खुद से इतना अनजाने कोई कैसे हो सकता है,
खेर, मै तो प्यार की परिभाषा जानती नहीं ........(इन्दु लडवाल)

भारत कह देंगे

सब मिलकर कुछ करें प्रयास
बीज बोयें दोस्ती के जातियों में
दिलों में डालें मोहब्बत की खाद,
फिर जो पनपेगा पोंधा

उसको भारत कह देंगे...

शांत से समंदर में तूफान ...

अरे ये क्या मंज़र दिखाया है,
शांत से समंदर में तूफान आया है,
इस धुएँ की काली चादर ने ढक दिया है आसमां,
सवेरा होने को बड़ा तरसाया है   ......(इन्दु लडवाल)

हिंसा की आग ...

आग के शोले बरस रहें है
दिल टूटे सब टूट रहें हैं
कौन है जाने इसके पीछे
क्यूँ आपस में झगड़ रहे हैं .....

तूने मैंने करके सब
मिट्टी में मिला रहे हैं
...
धर्म जाती के भेदभाव
कर अपना लहू क्यूँ बहा रहे हैं ....

पेंच लड़ाये राजनीती
कानून बना है खेल
अपनी अपनी सोचे हैं सब
कहीं वो बच्चे बिलख रहे हैं .....

जिनका है सामर्थ
वो मूक बने बैठे हैं
और बचे हैं जो हम
जैसे वो कविता बना रहे हैं ..... (इन्दु लडवाल)

सलीका ना सिखा ....

यूँ मुझे छोड़ के दुनिया में तमाशा ना बना
या तो क़त्ल कर दे या सलीका ना सिखा .......

वक्त की आँधियों को झेला किये हम
शाख से टूट कर भी देखा मंज़र-ए-तूफां
ढल गए हैं इसी साँचे में ता उम्र के लिए
ऐसे हालात में तुम कोई नसीहत ना करो .....

मेरे माज़ी तेरा एहसान ता-उम्र मुझपर
...
कैसे करूँ अदा की हम तो लुट चुकें है
चंद लम्हात ले आयीं हूँ चुरा तेरे वास्ते
इससे ज्यादा की तुम मुझसे उम्मीद ना करो ......

ये किन रास्तों पे सरकते हैं मेरे कदम
कौन सी मजिल की राह मिल गयी मुझे
हम तो भटके है इस मोड़ से आगे का सफर
अब लौट आने की हमसे गुज़ारिश ना करो .....

यूँ मुझे छोड़ के दुनिया में तमाशा ना बना
या तो क़त्ल कर दे या सलीका ना सिखा .......(इन्दु लडवाल)
 शब्दों को बांधना है, दिलों को टटोलना है,
किसी हँसी की आवाज़ सुनाई दे,
कहीं रोने की वजह मिले....
कहीं दूर से बारिश की महक आये,
कुछ सर्द हवा छु जाये तो लिख दूँ .......
वो मेरे दोस्त नब्ज़-ए-मोहब्बत पकड़ने आये
और ले गए दर्द का सैलाब...
मेरी दुआओं के साथ रहा करो,
मुझे भूलने की आदत है .........(इन्दु लड्वल

Sunday 12 August 2012

मै गुनेहगार नहीं ....

मुझसे नफरत ना करो मै गुनेहगार नहीं
वक्त की ऐसी आँधियों में तुम भी कभी चला करो
मेरे बारे में कोई राय कायम ना करो
मेरा जीना तुम भी कभी जीकर देखो ........(इन्दु लडवाल)

अंजान बस्तियों में ....

अंजान बस्तियों में
ना जाया करो अकेले
कौन खजर-ए-मोहब्बत
चुभा दे पता नहीं .....

शीशे का है दिल
पत्थर का ज़माना
कौन नाज़ुक-ए-दिल
तोड़ दे पता नहीं ........

हम तो बदनाम हुए
तुम ख़ैर रखना अपनी
कौन बेवजह ही मशहूर
कर दे पता नहीं .......

झूठ के दायरे बने नहीं
सच्चाई का इमान नहीं
कौन झूठा कह दे सच्चाई
से पता नहीं .......

अंजान बस्तियों में
ना जाया करो अकेले
कौन खजर-ए-मोहब्बत
चुभा दे पता नहीं ..........(इन्दु लडवाल)

शब्दों की लिए कतार

शब्दों की लिए कतार
इन्हें मैं बांध आज ले आई हूँ
कुछ हँसते कुछ गम के
पल बिताने यहाँ पर आई हूँ ...

जीवन है इक बहती नदिया
हम सब इसकी कश्ती हैं
बहते रहना उफ़ ना करना
भँवर हो या तूफान कोई ...

लड़ने से होगा क्या हासिल
प्यार गीत मै गाऊँ कोई
सब एक बंधन में बंध जाएँ
ऐसी डोर लगाऊं कोई ...

पतझड़ के मौसम में नाचूँ
खिजाओं से मै प्यार करूँ
रहने ना दूँ भेदभाव मैं
ऐसी जुगत लागाऊँ कोई ...

प्यार नफरत के बीज को
धरा के अंदर यूँ डालूँ
लिपटाये निकलें दोनों
पहचान ना पाए उसे कोई ...

 कुछ हँसी के पल बिताए आप के साथ
कुछ ग़मों के गीत गाये आप के साथ
सोये जागे कितनी बार फिर भी कम लगा
ये वक्त जो बिता बड़ा सुन्दर लगा आपके साथ .......(इन्दु लडवाल)

मै खुश हूँ ...

कभी अताह सागर भी
कम था पीने को
आज मिल जाये दो बूँद जीने की
मै खुश हूँ .......

कभी आंगन की
क्यारियों में बीता बचपन
...
आज झांकते खिड़की से दो पत्ते
में खुश हूँ........

रोने की वजह ना थी
ना खुश होने की कोई
आज वजहों से दूर चली जाऊँ
मै खुश हूँ........

महफिलों की कमीं ना थी
जहाँ बैठे दो यार रंग था
आज बेरंग हो जाऊँ
मै खुश हूँ.......

कुछ पाने की चाह में
टूटे-छूटे कई रिश्ते
आज तन्हा भी हो जाऊँ
मै खुश हूँ ......

बेवजह ही दोष क्यूँ देना
किसी अपने पराये को
मैं खुद हूँ गुनेहगार
मै खुश हूँ .................(इन्दु लडवाल)
यूँ ही मुस्कुराते रहो,
लाखों दिल जलाते रहो,
हुस्न-ए-यार तेरा भी गज़ब है
सीने में पत्थर फूलों की महक है.......(इन्दु लडवाल)

अजनबी बन जाएँ

मै ना जानू तुमको तुम ना जानो मुझको,
चलो फिर अजनबी बन जाएँ हम दोनों ...

बिताया वक्त जो हमने उसे माज़ी में रहने दो,
चलो फिर अजनबी बन जाएँ हम दोनों ...

वो वादे और वो कसमें निभाए जो नहीं हमने,
चलो फिर अजनबी बन जाएँ हम दोनों ...

वो टकराना की नज़रों का भुला दो तुम,
चलो फिर अजनबी बन जाएँ हम दोनों ...
तुम अगर पास ना होते तो
संभल जाती मै...

रहकर इतने करीब क्यूँ
मुझे सताते हो..... (इन्दु लडवाल)

पँख

मेरे सपनों को लगे पँख,
आप ने उड़ना सिखा दिया.
दिया इतना है झोली भर,
संभलना मुश्किल कर दिया,

अँधेरों में भटकते थे,
चिराग सा जला दिया,
हमें मंजिल की तलाश थी,
रस्ता आपने दिखा दिया,

स्नेह की मूर्ति बन गए,
सभी को गले लगा लिया,
जो तन्हा थे राहों में,
उन्हें भी साथ कर लिया,

नहीं है शब्द जो पूरा करे,
आपके इस प्यार को,
जमीं से उठाकर हमको,
आपने फलक कर दिया,

मेरे सपनों को लगे पँख,
आप ने उड़ना सिखा दिया.
दिया इतना है झोली भर,
संभलना मुश्किल कर दिया ...

फांसला रहने दें

दिल को तोड़ने वाले, मेरे मसीहा ना बनें,
फांसला रहने दें थोड़ा हमराज़ ना बनें,

भर रहे हैं खौफ जो हर जिस्म-ओ-जान में,
किसी दिन ये मंज़र तुम्हारे घर का ना बने,

कद्र कर तू प्यार कर बेहिसाब वार कर,
खुद की परवाह कर बेलगाम ना बनें,

फिरते हैं पहन कर जो शराफत के नकाब,
इल्म है हमको भी आप बेपरवाह ना बनें,

दिल को तोड़ने वाले, मेरे मसीहा ना बनें,
फांसला रहने दें थोड़ा हमराज़ ना बनें  ...

ये पैसा है कैसा ....

ये पैसा है कैसा, जो हों तो मुसीबत,
ना हो मुसीबत
हाय ! ये पैसा......


इक होड़ मची है दुनिया में
सब कुछ पाना है जल्दी
पैसा मकान दुकान और वो भी जो घरवाली है .......

मन शांत नहीं
बड़ा व्याकुल है तन
खुली आँखों में है कोई ख़्वाब सुनहरा ...

पत्थर सा कोई
पीठ पे लादे चलते हैं
है दर्द नहीं सब मगन है बस इस रेले में .......(इन्दु लडवाल)

बस यूँ ही.....

तुम्ही से सिखा मैंने हँसना ये रोना,
बिखेर कर मोती बाहों में समेटना,
दोनों हाथों से रेत भरना मुट्ठी में,
और फिर फिसल जाने देना यूँ ही........

देखना जी भर के कहीं प्यार से,
फिर नज़रें बना लेना गैर सी,
ख्वाबों में सजा रखना कोई मूरत,
पर सामने उसे कुछ ना कहना यूँ ही........

घिरे रहना सवालों से हरदम,
उसके आने पे जवाब ही देना,
दिन रात बस सोचना उसको,
आने पे नींद का बहाना करना यूँ ही......

तुम्ही से सिखा मैंने हँसना ये रोना,
बिखेर कर मोती बाहों में समेटना,
दोनों हाथों से रेत भरना मुट्ठी में,
और फिर फिसल जाने देना यूँ ही........(इन्दु लडवाल)

अंतस-मन और बंधन

इस भाग दौड़ से दूर कहीं,
दो पल जब तन्हा बिताती हूँ,
नज़र-भर देखती हूँ खुद को,
मै अक्सर बंधन पाती हूँ.....

कब खेल खेल में बीता बचपन,
जवानी की देहलीज़ लाँघ दी,
अब जीवन का छोर अधर में,
बचा है क्या अब पाने को .....

था समय नहीं की पहचानू,
क्या बुरा किया क्या भला रहा,
जैसी जब आई पुरवाई ,
मैंने तो रुख मोड़ लिया .....

खुद के अंतस-मन में झाँकूँ,
ऐसा सोचा समझा ना,
इस दुनिया के रेले में,
बहती रही पानी की तरहा .......

इस भाग दौड़ से दूर कहीं,
दो पल जब तन्हा बिताती हूँ,
नज़र-भर देखती हूँ खुद को,
मै अक्सर बंधन पाती हूँ .......(इन्दु लडवाल)

कुछ पल शाम के साथ .....

शाम का अघोष है,
रात ढले चल देगी,
अभी हूँ अपनी इसकी,
कल अजनबी कह देगी,
दिनभर किया इन्तज़ार,
अब नैन भिगाने आयी,
कुछ अपनी कहने आयी,
कुछ मेरी सुनने आयी,

जानती है मुझको वो,
पहचानती है मुझको,
शाम ढले मै उसकी हूँ,
दिन होते ही पराई,
साथी है संगिनी है,
हमसफ़र हमराज़,
फासला था दिनभर,
अब बैठेंगे साथ,

कुछ गम खोलेंगे,
कुछ हँसी ढहाके,
कुछ शीतल छाया,
कुछ गर्म रेत है,
कही बारिश बारिश,
कहीं सुखा तन है,
कहीं वेग बड़ा है,
कहीं छिन्न तार है,


विरहा में तेरी,
गुज़रा कैसे दिन,
मन ओतप्रोत है,
व्याकुल विचार हैं,
एक टीस उठी है,
दर्द मीठा सा है,
तुमसे कहने को,
दिल आतुर सा है ..........(इंदु लड्वल)
तुम्हारी निगाहों से पीना है,
पलकें बंद ना करना कभी,
ये नशा तेरी मोहब्बत का,
जाम खाली ना करना कभी .....(इंदु लड्वल)

तेरे आने की खबर

जाते जाते एक इन्तज़ार भी दे जाती हूँ....
तेरे आने की खबर भी दे जाती हूँ......

तेरे आने की खबर पाकर,
चहक जाऊँ किधर जाऊँ,
है बड़ी मुश्किल हाल-ए-दिल,
मै क्या कर गुज़र जाऊँ,

पांव ठहरते नहीं मन उड़ा,
ये किस कश्मकश में हूँ,
आने दूँ तुम्हे अपनी गली,
या खुद ही चली आऊँ,

ये कहूँगी मैं तुम्हे या,
वो कहूँ दिल खोलकर,
तुझे देखूँ की जी भरके,
या खुद संवर भी जाऊँ,

मिलाऊँगी कैसे मैं नज़र,
ये सोच के ही घबराऊँ,
मैं इतराऊँ की बलखाऊँ,
शरमा से पानी हो जाऊँ,

तेरे आने की खबर पाकर,
मै क्या कर गुज़र जाऊँ ........(इंदु लड्वल)

प्यास बड़ी

कितने बरस बिताए तुमने,
आने को मेरे पास,
अब कहते हो भूल जाऊँ,
विरह की वो काली रात,
प्यास बड़ा कर तुम ना आये,
व्याकुल मन जियरा तरसाए,

सूरज चाँद को मै क्या करती,
शीतल छाया गर्मी पड़ती,
अँधियारा कितना गहराता,
सूरज चमक चमक सा जाता,
दिल को है जो प्यास बड़ी,
तुम ही कह दो कैसे बुझे .........(इंदु लड्वल)

झूठ एक छोटा सा

झूठ भी एक छोटा सा नहीं बोल पाते तुम,
छुपाना नहीं आता तो क्यूँ छुपाते हो,

जो लिखे थे खत मैंने जला दिया तुमने ?
जानती हूँ सिरहाने में रखकर सोते हो,

दर्द जो मैंने दिया वो सह गए क्या तुम ?
दिल को बड़ा मज़बूत कर रखते हो,
कोशिशें करते नहीं मुझको भुलाने की ?
दर्द-ए-ज़ख्म हरा किये रखते हो,

झूठ भी एक छोटा सा नहीं बोल पाते तुम,
छुपाना नहीं आता तो क्यूँ छुपाते हो ...

बेक़रार

क्या कहें जब भी तेरा दीदार होता है,
प्यास बडती है ये दिल बेक़रार होता है,

कभी मिल जायेगा जो वक्त समझायेंगे,
अभी कुछ रोज तो फांसला कर लो,

मुझे फुरसत नहीं मिलती दुनिया वालों से,
तुम खुद ही मिलने चले आया करो ...

घटाएँ सावन की

मुझे तुम भीग जाने दो,
इस मौसम में ज़रा,
हवाएँ सर्द हैं लेकिन,
अंदर शोला है ज़रा,

यूँ तो बयाँ करना बरसात को बड़ा मुश्किल है दोस्तों पर कुछ अल्फाज़ जो साथ दे गए वही के रही हूँ.....

घटाएँ सावन की फिर,
घिर घिर आती हैं,
बावरे मन को कहीं,
दूर उड़ा ले जाती है,

यूँ तो कहने को,
पानी ही है ये दोस्तों,
पर बदन को छूते ही,
आग सी लग जाती है .....(इंदु लड्वल)

बयाँ करने को और भी अल्फाज़ बांकी हैं मगर ये दो पंक्तियाँ ही काफी है शायद

दिल निकल सा जाता है

तुमको आँखों में बसा लूँ,
हसीन ख़्वाब आ जाता है,
ज़रा धडकन तो संभालूँ,
दिल निकल सा जाता है,

ये मदहोशी बड़ी खूबसूरत,
ये नशेमन बड़ा दिलकश,
तुम्हे देखा किये जब भी,
दिन-ए-मौसम बदल जाता है ......(इंदु लड्वल)

वो नज़र कहाँ से लाऊँ

मेरी हँसी के पीछे छुपा गम तलाश पाए,
मुझको समझ पाए वो नज़र कहाँ से लाऊँ,

घड़ी दो घड़ी को तो बैठते हैं सब यहाँ,
जो उम्र गुजार दे हमसफ़र कहाँ से लाऊँ,
दो अश्क पोछने को हैं लाख मुसाफिर,
जो काँधे से लगाये हमदर्द कहाँ से लाऊँ,

और भी हैं गम ज़माने में ये जानती हूँ,
जो सिर्फ मुझे मिल जाये खुशी कहाँ से लाऊँ,

मेरी हँसी के पीछे छुपा गम तलाश पाए,
मुझको समझ पाए वो नज़र कहाँ से लाऊँ ...

अक्सर कुछ सोच कर .....

बूँदे बारिश की बड़ी अच्छी लगती हैं,
भीग जाता है तन मन इसमें डूबकर,
खुद को मै इसमें भीग जाने देती,
मगर कुछ सोच कर खुद को ढांक लेती,
...

उड़ता है मन मयूरा कहीं दूर गगन को,
मचली हुई हवाएँ मचला सा है मौसम,
अक्सर खुली वादियों में मैं पँख फैलाती,
मगर कुछ सोच कर हाथों को बांध लेती,

ये किसका है डर जाने कौन है पीछे मेरे,
हर कोशिश मै खुद नाकाम कर देती हूँ,
चाहती हूँ हरपल को खुशियों से भरना,
मगर कुछ सोच कर खुद को जीने नहीं देती ......(इंदु लड्वल

बारिश

तन मन भिगाती बारिश,
चँचल तितली ये बारिश,
ओड के काली चादर,
मस्त मलंग ये बारिश ...

उजाले की तलाश में

आज सुबह जब आँख खुली,
कल की बातें भूली सी थी,
क्या कहा किया किसने जाने,
मैं तो मधुर सपनों में थी

किसी उजाले की तलाश में,
दूर दिशा को जाती थी,
बाहें फेलाए चारो तरफ,
खुशियाँ समेटती जाती थी,

अन्जाने चेहरे लाखों थे,
पहचान बनाती जाती थी,
गर्म रेत के टीलों पर,
फूल उगाती जाती थी ...
किसी का भगवान/खुदा नहीं सिखाता बैर रखना,
आओ हम तुम सब इस बात को साबित करें,
अल्लाह को माने भगवान को पूजें इक समान,
किसी का सर कलम ना हो ये वादा करें,

प्यार में तो कसमे तुमने खाई होंगी बहुत,
एक बार इन्सानियत के लिए ही बोल दो,
दुश्मन है वो जो गलत राह चुनता है,
रहें सब बेख़ौफ़ ऐसा आलम करदो ..........(इंदु लड्वल)

यूँ जाया ना करो

लिख के नाम कागज़ पर मिटाया ना करो,
अन्जाने ही सही दिल को दुखाया ना करो,
बड़ी बेदर्द है दुनिया और ये दुनिया वाले,
अकेला छोड़ कर हमको यूँ जाया ना करो,

बैठ लो पास दो घड़ी को चैन आ जाये,
तिलमिलाती धूप में छाया कर दो,
बड़ी बेदर्द है दुनिया और ये दुनिया वाले,
अकेला छोड़ कर हमको यूँ जाया ना करो,

अपनी बाँहों में कैद कर लो रिहाई ना मिले,
लग जाने दो इलज़ाम कोई सफाई ना मिले,
बड़ी बेदर्द है दुनिया और ये दुनिया वाले,
अकेला छोड़ कर हमको यूँ जाया ना करो,

बिन तेरे जीना सीखा ही नहीं मैंने,
अब इस मोड़ पर जुदाई ना करना,
बड़ी बेदर्द है दुनिया और ये दुनिया वाले,
अकेला छोड़ कर हमको यूँ जाया ना करो ...

उलझी जिंदगी

ये जिंदगी बहुत उलझी सी है,
इसकी तह में कितने राज़ हैं,
राज़ जिनको उकेरना मुमकिन नहीं
फिर भी सुलझाने का प्रयास है ...

जानती हूँ है मुझे इल्म हर बात का,
किसको सुनाया जाये ये किस्सा,
कौन व्यर्थ ही जूझेगा इससे,
फिर भी सुलझाने का प्रयास है

ये जिंदगी बहुत उलझी सी है,
फिर भी सुलझाने का प्रयास है ...

तेरा साया

इश्क-ए-गम में डूबे तो ये आलम देखा,
जिधर देखा हर शख्स तेरा चेहरा देखा,
गुमनाम अँधेरों से लड़ते लड़ते अक्सर,
उन अधेरों में लिपटा तेरा साया देखा ...

पहचानते नहीं

उनकी पलकों पे कई ख़्वाब गुज़ारे हमने,
अब वो कहते हैं की हमको पहचानते नहीं,

शिकवा ये नहीं की हमको वो भूल गए,
है गीला इतनी की हम उन्हें भूल पाते नहीं,

रिस रही है जिंदगी जिन दो पाटों के बीच,
क्यूँ भला इस भँवर से हम निकल पाते नहीं,

उनकी पलकों पे कई ख़्वाब गुज़ारे हमने,
अब वो कहते हैं की हमको पहचानते नहीं ...
ये रौशनी तेरे आने की उजाले हर तरफ,
मेरे अंधेरों को तुम जैसा साथी मिल गया ...

जाने वाले

जाने वाले तो बस चले जाते हैं,
रोते बिलखते लोग छोड़ जाते हैं,
कभी तो मुड कर देख ले मसीहा,
पीछे कितने दिल चूर हुए जाते हैं ...

संगदिल तुम

ना विरानो को थी खबर तेरे जाने की सनम,
तू मुद्द्तों से फ़िराक में था शायद,

कोई चाहे की मिले कोई अपना साया,
तुम मिले ना मिलने जैसा था आलम,

ए खुदा दिल पे गुज़र जाती है कितनी बातें,
बनके संगदिल तुम अक्सर जाया ना करो ...

तुम दे गए उम्मीद सी

तुम दे गए उम्मीद सी मुझको जीने की,
इक झलक ने तेरी जादू सा कर दिया,

वो महक भीनी सी नशेमन से जो गुजरी,
महकते बागों को फीका सा कर दिया,

तुम मेरी उम्मीद से भी आगे निकल गए,
जाना तेरा दिल पर क्या क्या गुज़र गया,

तुम दे गए उम्मीद सी मुझको जीने की,
इक झलक ने तेरी जादू सा कर दिया ...

वक्त

हम भी हँस दिए देखकर अपने हालातों को,
कितना बदल देता है वक्त भी इंसानों को,
कहाँ तो हम इक चुभन पर आह करते थे,
कहाँ ज़ख्मे-नासूर को हम वाह कहते हैं ...

सवेरा

ये सवेरा कुछ नया लाया है अपने साथ में,
है नई रंगीन दुनिया और नए से लोग हैं,
दिल में हैं जस्बात कुछ धड़कने तेज़ हैं,
गुनगुनाती जा रही लबों पर जो गीत हैं ...

ना रख रंज़िशे

ऐ मेरे दिल ना रख रंज़िशे खुल के प्यार कर,
मेरे दुश्मन को भी खाक एक दिन हो जाना है,

खुशी से झूम ले नाच ले ना शिकायत कर,
ये मौसम भी एक दिन बदल जाना है,

दिल-ए-गुंबद में कोई हँसी प्यार बसा,
ये दिल भी एक दिन टूट जाना है,
 

वक्त ज़ालिम है पैरों से रोंद ना सकूँ,
इसलिए मुझे बहाव में बह जाना है,

ऐ मेरे दिल ना रख रंज़िशे खुल के प्यार कर,
मेरे दुश्मन को भी खाक एक दिन हो जाना है ...

इत्तेफाक नहीं

इत्तेफाक हो नहीं सकता तेरा यूँ मिलना,
मेरे हूजूर क्या है राज़ ये समझाईये ज़रा,
क्यूँ भला मिले मुझे इस भरी दुनिया में,
और भी तो थे नज़रों में हुस्न-ए-वफ़ा ...

रुत-ए-बहार

बहुत दिनों के बाद होंटों पर हँसी आयी,
किसका असर है खुशी से आँख भर आयी,

खाली हथेली पर गुलशन-ए-फूल खिल गए,
खिज़ाओं के मौसम में रुत-ए-बहार आयी,

बहुत दिनों के बाद होंटों पर हँसी आयी,
किसका असर है खुशी से आँख भर आयी ...

तमन्नाएँ और आरजू

तमन्नाएँ और आरजू खत्म नहीं होतीं,
जितना भी मिल जाये ये दफ्न नहीं होती,
हूँ तो आखिर इन्सा ही मजबूर हूँ क्या करूँ,
जितना भी रोकूँ ये आवाज़ें बंद नहीं होतीं ...

मुहब्बतों के चिराग

ये मुहब्बतों के चिराग जलते रहें,
यूँ ही दिल से दिल मिलते रहें,
चलो तुम भी और मै भी साथ ,
तेरे मेरे रास्ते यूँ ही चलते रहें...

फुरसतों के पल

वो फुरसतों के पल मिल जाएँ फिर कहीं,
बिखरे हों रास्तों पे मै लगा लूँ गले,

देर रात तक यूँही चाँद को निहारना,
खुद से ही कितनी बातें कर डालना,

दोस्तों के साथ वो हँसना और रूठना,
रोना रुलाना, रुला के फिर मनाना,
 
टीचरों को छेडना नाम कोई देना,
अपना इल्जाम और किसी पे डालना,
 

मस्त थे वो दिन भी यारों कहाँ गए न जाने,
ढूँढती हूँ अब भी किसी राह में मिल जाएँ ...

कृष्णा मन को भाए


मोहनी मूरत साँवली सूरत,
कृष्णा मन को भाए,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,

माखन चोर तू कृष्ण कनहिया,
क्यूँ व्याकुल कर जाये,
हाए!
...
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,

मुरली मनोहर गोपियों के संग,
कैसी रास रचाए,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,

तुम बिन प्रभु जिया नाही लागे,
संसार ये नीरस लागे,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,

मेरे घर आँगन तू आजा,
बलिहारी में जाऊं,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,

क्रोध दोष सब छोड़ दूं मै,
चरनन से जो तू लगाये,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,
तुम बिन उजियारे को तरसूँ,
अँधियारा जीवन हो जाये,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए,

साँझ सवेरे दर्शन तेरे,
मुझको जो हो जाये,
हाए!
कैसी प्रीत लगाये,
कृष्णा मन को भाए ...

आहटें


क्यूँ आज दिल फिर तड़प उठा है,
किसी की आने की आहटें हैं,
वो शाम लौटे वो रात लौटे,
यही गुज़ारिश किये हुए हैं,

वो सिलवटें जो हैं दिल में कायम,
धड़क रहीं हैं तेरी छुअन को,
पलक मेरी राहों में बिछी है,
कदम बड़ा आजा पास आ तू,
पिघल रही हूँ मै मोम बनकर,
सजा दे मुझको नए रूप में,
तू अपने दिल का करार दे दे,
मेरे दिल की तू आह ले ले,

क्यूँ आज दिल फिर तड़प उठा है,
किसी की आने की आहटें हैं,
वो शाम लौटे वो रात लौटे,
यही गुज़ारिश किये हुए हैं ...

पलकों से ना लगाया करो

झूठ ना कहने लगें हम,
इतना ना आजमाया करो,
क़दमों पे रखते हैं जगह,
पलकों से ना लगाया करो,

देखा करो बस दूर से हमको,
सीने से यूँ ना लगाया करो,
हम तो लुटेरे हैं दिल के,
यूँ घर ना हमें ले जाया करो ...

लोग पत्थर हैं


ज़रा ज़रा सी बात का तमाशा किये हैं सब,
दिल है नाज़ुक मेरा लोग पत्थर हैं,

किस किस के गिरेबाँ में झाँक कर देखिये,
लब पर हँसी इनके हाथों में खंजर है,

खिलते हैं जो रंगीन फूल इनके बगीचों में,
खून-ए-दिल मेरा उनके अन्दर है,
मै तो खामोश रहती हूँ ये सोच कर,
जाने किस किस की नज़र अब मुझपर है,

उम्र बीत रही है कितने कारवाँ चले गए,
जाने किस उलझन में हम अब भी कैद हैं,

कर दिया तो हमने सब का हिसाब है,
फिर भी ना जाने कितनो के कर्ज़दार हैं,

कुछ अजब ज़िन्दगी के फलसफे से हैं,
नज़दीक हैं जो मेरे वही दिल से दूर हैं ...

चेहरा-ए-खास

भूले ही कभी कोई इस घर तक आया होगा
आवाज़ लगाई होगी दरवाज़ा खटखटाया होगा
उन दस्तकों से कोई जवाब ना पाया होगा
मायूस वो फिर अपने रास्ते लौट आया होगा ...
इस घर में रहती तन्हाई का आलम-ए-गम
उस अंजान के कदमों से वाबस्दा नहीं होगा
यूँ तो खिड़कियों से रोज़ झाँकता एक साया (बाहर को)
जाने किस चेहरा-ए-खास को पहचानता होगा  ...

Wednesday 18 April 2012

मुलाकात



 
आज मुलाकात हो गयी उनसे,
वो वही थे पर हम बदल गए,
उनके देखने का अंदाज़ वही था,
पर निगाहें हमारी बदल गयीं,

हम तो अब भी गुलिस्तान हैं,
सेहरा में वो उजड़ गए,
हमने फूलों को सजाया,
और उनके लिए कांटें पिरो गए,  

ज उनको खुलकर देखा हमने,
बंदगी से सर झुका दिया,
इतने मिले उनके हालत हमसे,
हम हैं वो और वो हम ऐसा लगा,

खोला जो दिल उनका,
मिले कुछ पुराने किस्से,
कुछ हमारी शिकायतें,
और कुछ बेवफाई,

सहेज कर रखतें हैं वो,
तमाम उम्र का हिसाब,
किसने दिया कितना दिया,
ये उनको नहीं है याद,

मेरे क़दमों की छाप,
आज भी है उनके दर पे,
कितने बरसों से उनने,
सफाई नहीं की घर की,

जिस आईने में उनने,
देखा था मुझको,
मुद्दतों बाद भी वो तस्वीर,
कायम है अब तक,

जिस जगह बैठे थे,
साँथ हम कभी,
उनने यादों की एक,
चादर सी डाल रक्खी है,

दी कसम हमने थी कभी,
उनको न रोने की,
उनने वादा तो किया पूरा,
ऑंखें पथरा सी रक्खी हैं,

मुस्कुरातें हैं मगर,
वो ख़लिश झलक जाती है,
जो दिन गुज़रे बिना मेरे,
वो कमी तडपाती हैं,

आज मुलाकात हो गयी उनसे,
वो वही थे पर हम बदल गए,
उनके देखने का अंदाज़ वही था,
पर निगाहें हमारी बदल गयीं,.........................(इंदु)

तेरे बिन जीना



 
तुम तो कहते थे की वक़्त कट जायेगा,
पर ये न कहा की तेरे बिन जीना है,
हालाते आंधियों को सहना है,
पर अकेले तेरे बिन जीना है,

कहाँ से लाऊं तेरा जैसा होंसला,
दर्द में जीने के वो फलसफे,
कुछ कही अनकही लोगों की,
सहना और चुप रहना,

कहाँ से लाऊं हंसी तेरी वो,
कहाँ से लाऊं रोना,
चुप चुप के वो इशारे करना,
जुबाँ से कुछ न कहना,

पलकों पर तेरी पलकें गिरना,
धड़कन का वो मचलना,
साँसों की हर एक महक को,
सीने से लगा कर रखना,

हँसती हूँ मै तन्हाई में,
सोच के तेरी बातें,
जीना है बस अब है जीना,
पर अकेले तेरे बिन जीना ...............................(इंदु)

साँझ





वो रात की चादर ओड़े अक्सर आती है,
मन के विचलित भावों को मेरे जगाती है,
क्या कहा किया मैंने दिनभर वो पूछे है,
खुद को कितना मजबूर किया वो पूछे है,

वो पूछे है ................(साँझ)

इस दुनिया के रेले में कब तक बहुंगी मै,
कब तक मृगतृष्णा के पीछे पडूँगी मै,
सीने में चुभती है अब ये विस्तृत ख़ामोशी,
कब साँझ तले मै लौट सकूँ इस तूफां से..........................(इंदु)

ऊपर से पत्थर अन्दर फूल

मत पूछ की हाले-दिल बहुत कमज़ोर हुआ करते हैं,
दीखते हैं ऊपर से पत्थर अन्दर फूल हुआ करते हैं,

जो रास्ता लगता है मुझे बहुत ही अकेला,
हाथ में लिए खंजर लोग इंतजार करते हैं,

दिल के ज़ख्म जब किसी के सामने खुलते है,
तालियाँ बजती हैं लोग वाह वाह करते हैं,
 

तुम ही कहो कैसे मै निभाऊं इस हालत में,
छेद हो जो कपड़ो में तो ये झाँका करते हैं,

इनसे तो भले कब्रिस्तान के मुर्दे हैं शायद,
हम रोते हैं तो वो कहकशे नहीं करते,

हर बात का चाहिए इनको जवाब क्यूँ,
हम तुमसे तो कोई भी वास्ता नहीं करते,

जो हमें लगता की हम लुट जायेंगे यहाँ,
तेरे शहर में हम आसरा नहीं करते,

ना नज़रों की शराफत ना दिल में है खौफ,
होता जो हमें इल्म तो हम यहाँ आया नहीं करते ...

इश्क़

ये मुर्दे से पड़े लोगो कहाँ से आए हैं,
ना आँखों में पानी है और ना जवानी है,
सूखे पत्तों से बिखरे हुए हैं ये,
सीने में ना धड़कन है ना खून में रवानी है,

कुछ सुना किया करते थे हम,
ये लोग हैं वो जो इश्क़ में थे ...

tufan



आँखों में नमी थी, और दिल में तूफान,
रो रहीं थी यादें और गुम थे जस्बात,
फिर भी हमने हालत को समझाया कई बार,
यही है ज़िन्दगी ऐसे ही जीते हैं इसको यार,

कहीं देख रेला चला जा रहा है,
खुशियों की लड़ी है दिल में बहार,
कहीं ग़म की चादर फैलाये है पैर,
टूटे हैं दिल बिखरे हैं ज़ार ज़ार,

 गीत कोई गाऊँ ये सोच के रुक जाऊं,
है अकेला रास्ता कौन सुनेगा,
रूठ भी जाऊं पर क्यूँ मै इतराऊँ,
हँस दो एक बार ये कौन कहेगा,

कितना है ग़म और कितना आराम,
किसको ख़बर कब ढल जाये ये शाम,
ज़ख्म तो जीवन की अनमोल दावा है,
पूछो ये उससे जिसने दर्द पिया है..........(indu)

Wednesday 21 March 2012

गम बिकते नहीं हमारे

ताल्लुक तो तेरा
होता होगा कितनो से,
हमारा भी जिक्र
छेड़ दिया कीजिये,
गम बिकते नहीं हमारे,
कोई सोदा तो तय करा दीजिये,

कितने बरसों से इन्हें
सहेज कर रक्खा हमने,
अब नहीं चाहिए
बिक जाये तो बिका दीजिये,

वैसे तो मुमकिन नहीं है
गम के बिना जीना
पर संभाल जायेगा दिल
कुछ वक़्त के बाद.................................(इंदु)

Tuesday 20 March 2012



चार दिन की ज़िन्दगी में रंजो-ग़म कितने,
हैं फासले कितने, मुश्किल है ये बताना............ (indu)

मै पंछी अपनी राह की





मै पंछी अपनी राह की,
मुझको क्या करना इधर उधर,
 
जिस ओर चली मै पंख पसारे,
उस ओर ही मेरी मंजिल है,

कितने चेहरे राहों में,
मुझसे मिलते जुलते थे,

मेरा जैसा ही जीवन था,
मेरी ही एक कहानी थी,

कुछ पल को तो मै सिहर गयी,
कुछ देखा ऐसा बिखर गयी,

कोई संग ना साथी मेरा था,
में तन्हा रस्ता सूना था,

पलकों को मैंने मूँद लिया,
एक डाल पे जा कर मै बैठी,

कुछ सोचा जीवन तो ऐसा है,
हर पल चलते ही रहना है,

जो ठहर गया वो खोता है,
जो चलता है वो पता है,

नव जीवन की इक डोर बंधी,
मै फिर से उड़ने को उतरी,

है हर्ष नया उल्लास नया,
अब लोगों से क्या डरना है,

वो भी मांटी मै भी मांटी,
वो भी इक दिन मिट जाना है,

मै राह चलूँ चलती रहूँ,
अब दिन ना कोई रात लगे

मै पंछी अपनी राह की,
मुझको क्या करना इधर उधर ............ (इंदु)

Monday 19 March 2012

रहने दे ऐ दिल




रहने दे ऐ दिल कोई बात नहीं, वो पहचानते नहीं तो है अपनी किस्मत,
क्या पता मेरी तरह उसका भी कोई ग़म होगा,
चाह कर भी वो मुझको अपना ना बना पाया.......

फिर किसी मज़िल की तमन्ना ना की तेरे जाने के बाद,
जिंदगी के रास्ते में भिखरे हैं तेरी यादों के फूल,
हर एक राह तो चुभती है, एक तेरी राह में मिलता है सुकून....... (इंदु)

Thursday 26 January 2012

सफ़र



कुछ अनदेखी कुछ जानी सी, कुछ गैर सी कुछ अपनी,
आज़ाद कोई, कुछ बंधन में, सूरत दिखती हैं राहों में,
 

किसी की ऑंखें सर्द पड़ी है, कोई है विरानो में ग़ुम,
है कैसी यह तृष्णा, जो बुझ न पाई है अब तक,

हँसी किसी के होंटों पर, किसी के लब हैं सूखे से,
कहीं है दो बूंदों की कहानी, कहीं है सागर भी कम,

उलझा बैठा है कोई, अपनी गुत्थी को सुलझाने में,
और किसी को सरल मिला है, जीवन व्यापन करने को,

ईश्वर के चरणों में कोई, धुनी रमाये बैठा है,
किसी के जीवन में धन ही, ईश्वर बन बैठा है......(by Indu)

Sunday 22 January 2012

डर लगता क्यूँ है




हम भाग रहे हैं किस से, कौन है पीछे,
अपना ही तो है साया,  फिर भी डर लगता क्यूँ है,


कोई बात कहते कहते, सिने में दफ़न हो जाती है,
अपने ही तो हैं लोग, फिर भी डर लगता क्यूँ है,

दिल बरा मासूम है, उम्मीदों पे खुश हो जाता है,
दर्द का कोई गम नहीं, फिर भी डर लगता क्यूँ है,

काँच की दीवार को, तोडना मुश्किल नहीं,
जख्म भी हैं अच्छे, फिर भी डर लगता क्यूँ हैं,

हम नहीं रखते किसी को, बांध कर अपने बगल,
हैं बड़े मज़बूत रिश्ते, फिर भी डर लगता क्यूँ है,

हम भाग रहें हैं किस से, कौन है पीछे,
अपना ही तो है साया, फिर भी डर लगता क्यूँ है......  ( इंदु)

FIR ANJAN MAT KEHNA



Sab kuch kehna humse, par anjan mat kehna,
Hum par bhi beeta hai wo sab, jo tumko hai sehna,

Mai bankr wo waqt, dikha sakti hon tumko aina,
Jise dekh tum ro jaoge, or kahoge ye din aye na,

Marhum par marhum rakhte hain, duniya wale hans-hans kar,
Koi dikhaye jakhm hara, wo bhar na paye jo ab tak,

Tane kas-kr hansi-hansi mai, humko kehte hain apna,
Unko kya maloom, humne bhi seekh liya hai chup rehna,

Dushman bahut hain duniya mai, ab yaron se bhi bachna hai,
Kiski nazar mai kab ban jayen, bure bhale kya karna hai,

Dekhi duniya, sab jancha parkha, ek hi bat samajh ayi,
Kar tu maan ki, sun sab ki, na jane koi peer parayi,

Muskurate reh halaton par, ankhon mai nami honton par hansi,
Yahi hai lay bas jivan ka, tanhai bhi ban jaye sakhi,

Jisne bola jaisa bola, sabko humne hansa diya,
Par jab ayi bari meri, sabne jholi khali dekha diya,

Sab kuch kehna humse, par anjan mat kehna,
Halaton ko humne jhela, bas itna hi hai kehna,

Sab kuch kehan................................ (by Indu)

आरज़ू




रफ़्तार भरी जिंदगी में, एक पल मिल जाये कहीं,
कोई तो तारा हो, जो आरजू के लिए टूट जाये मेरी,


थाम ले हाथ मेरे, जो लडखडा जाउन कभी,
मना ले मुझको, जो रूठ जाउन कभी,

मैं कोई समंदर तो नहीं, प्यास बुझाती रहोउं ,
मुझको भी है प्यास, दो बूँद मिल जाये कहीं,


हर रोज़ तो हाथ इबादद के लिए, उठतें हैं मेरे,
कभी तो खुदा भी आए, इबादद पे मेरी,


रफ़्तार भरी जिंदगी में, एक पल मिल जाये कहीं,
कोई तो तारा हो जो आरजू के लिए टूट जाये मेरी.....(इंदु लडवाल)

MERI KHUSHI




Lag jaye na najar, humse kam mulakat kijiye,
Deewar bhi sunti hai, khamoshi se baat kijiye,


Apke aane se lagta hai dar, kho jane ka,
Na bhichren aap humse, aisi koi sougat dijiye,


Muskurahat apki har gam bhula de, har pal bhula de,
Hai kasam ye apko, har baat par muskura dijiye,


Gam bare hain duniya mei, parwah kyun karein,
Honsla kiye chalte hai, bas aap santh dijiye,


Ho andheri raat ya anjan rahein, dar nahi,
Ek mera jism or ek saya tera santh kar dijiye,


Lag na jaye najar, humse kam mulakat kijiye...
Deewar bhi sunti ..........................................     (by indu ladwal)

Meri Yaadein

tum jati to ho, par laut ke ana jarur,
ki tere bin to mumkin nahi hai jina,

milti rehna rah-e-gujar mai, pehchan lena,
ki tere bin to khud ko na pehchan paun mai,


hal-e-dil puch lena kabhi, samne aa jaon to,
nazron ko begana mat bana lena oro ki tarha,


tu meri jindgi bhar ki dulat hai, ki lutaon kaise,
mar mar k tujhe paya hai, gawaon kaise,


tu to yadein hai meri, tujhko bhulaon kaiase,
rehna bas yun hi, rehti ayi ho ab tk jaise............(by Indu)