Sunday 12 August 2012

बस यूँ ही.....

तुम्ही से सिखा मैंने हँसना ये रोना,
बिखेर कर मोती बाहों में समेटना,
दोनों हाथों से रेत भरना मुट्ठी में,
और फिर फिसल जाने देना यूँ ही........

देखना जी भर के कहीं प्यार से,
फिर नज़रें बना लेना गैर सी,
ख्वाबों में सजा रखना कोई मूरत,
पर सामने उसे कुछ ना कहना यूँ ही........

घिरे रहना सवालों से हरदम,
उसके आने पे जवाब ही देना,
दिन रात बस सोचना उसको,
आने पे नींद का बहाना करना यूँ ही......

तुम्ही से सिखा मैंने हँसना ये रोना,
बिखेर कर मोती बाहों में समेटना,
दोनों हाथों से रेत भरना मुट्ठी में,
और फिर फिसल जाने देना यूँ ही........(इन्दु लडवाल)

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