झूठ भी एक छोटा सा नहीं बोल पाते तुम,
छुपाना नहीं आता तो क्यूँ छुपाते हो,
जो लिखे थे खत मैंने जला दिया तुमने ?
जानती हूँ सिरहाने में रखकर सोते हो,
दर्द जो मैंने दिया वो सह गए क्या तुम ?
दिल को बड़ा मज़बूत कर रखते हो,
छुपाना नहीं आता तो क्यूँ छुपाते हो,
जो लिखे थे खत मैंने जला दिया तुमने ?
जानती हूँ सिरहाने में रखकर सोते हो,
दर्द जो मैंने दिया वो सह गए क्या तुम ?
दिल को बड़ा मज़बूत कर रखते हो,
कोशिशें करते नहीं मुझको भुलाने की ?
दर्द-ए-ज़ख्म हरा किये रखते हो,
झूठ भी एक छोटा सा नहीं बोल पाते तुम,
छुपाना नहीं आता तो क्यूँ छुपाते हो ...
दर्द-ए-ज़ख्म हरा किये रखते हो,
झूठ भी एक छोटा सा नहीं बोल पाते तुम,
छुपाना नहीं आता तो क्यूँ छुपाते हो ...
No comments:
Post a Comment