वो फुरसतों के पल मिल जाएँ फिर कहीं,
बिखरे हों रास्तों पे मै लगा लूँ गले,
देर रात तक यूँही चाँद को निहारना,
खुद से ही कितनी बातें कर डालना,
दोस्तों के साथ वो हँसना और रूठना,
रोना रुलाना, रुला के फिर मनाना,
टीचरों को छेडना नाम कोई देना,
अपना इल्जाम और किसी पे डालना,
बिखरे हों रास्तों पे मै लगा लूँ गले,
देर रात तक यूँही चाँद को निहारना,
खुद से ही कितनी बातें कर डालना,
दोस्तों के साथ वो हँसना और रूठना,
रोना रुलाना, रुला के फिर मनाना,
टीचरों को छेडना नाम कोई देना,
अपना इल्जाम और किसी पे डालना,
मस्त थे वो दिन भी यारों कहाँ गए न जाने,
ढूँढती हूँ अब भी किसी राह में मिल जाएँ ...
ढूँढती हूँ अब भी किसी राह में मिल जाएँ ...
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