Sunday 12 August 2012

कुछ पल शाम के साथ .....

शाम का अघोष है,
रात ढले चल देगी,
अभी हूँ अपनी इसकी,
कल अजनबी कह देगी,
दिनभर किया इन्तज़ार,
अब नैन भिगाने आयी,
कुछ अपनी कहने आयी,
कुछ मेरी सुनने आयी,

जानती है मुझको वो,
पहचानती है मुझको,
शाम ढले मै उसकी हूँ,
दिन होते ही पराई,
साथी है संगिनी है,
हमसफ़र हमराज़,
फासला था दिनभर,
अब बैठेंगे साथ,

कुछ गम खोलेंगे,
कुछ हँसी ढहाके,
कुछ शीतल छाया,
कुछ गर्म रेत है,
कही बारिश बारिश,
कहीं सुखा तन है,
कहीं वेग बड़ा है,
कहीं छिन्न तार है,


विरहा में तेरी,
गुज़रा कैसे दिन,
मन ओतप्रोत है,
व्याकुल विचार हैं,
एक टीस उठी है,
दर्द मीठा सा है,
तुमसे कहने को,
दिल आतुर सा है ..........(इंदु लड्वल)

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