भूले ही कभी कोई इस घर तक आया होगा
आवाज़ लगाई होगी दरवाज़ा खटखटाया होगा
उन दस्तकों से कोई जवाब ना पाया होगा
मायूस वो फिर अपने रास्ते लौट आया होगा
इस घर में रहती तन्हाई का आलम-ए-गम
उस अंजान के कदमों से वाबस्दा नहीं होगा
यूँ तो खिड़कियों से रोज़ झाँकता एक साया (बाहर को)
जाने किस चेहरा-ए-खास को पहचानता होगा ........(इन्दु लडवाल)
आवाज़ लगाई होगी दरवाज़ा खटखटाया होगा
उन दस्तकों से कोई जवाब ना पाया होगा
मायूस वो फिर अपने रास्ते लौट आया होगा
इस घर में रहती तन्हाई का आलम-ए-गम
उस अंजान के कदमों से वाबस्दा नहीं होगा
यूँ तो खिड़कियों से रोज़ झाँकता एक साया (बाहर को)
जाने किस चेहरा-ए-खास को पहचानता होगा ........(इन्दु लडवाल)
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