Tuesday 20 March 2012

मै पंछी अपनी राह की





मै पंछी अपनी राह की,
मुझको क्या करना इधर उधर,
 
जिस ओर चली मै पंख पसारे,
उस ओर ही मेरी मंजिल है,

कितने चेहरे राहों में,
मुझसे मिलते जुलते थे,

मेरा जैसा ही जीवन था,
मेरी ही एक कहानी थी,

कुछ पल को तो मै सिहर गयी,
कुछ देखा ऐसा बिखर गयी,

कोई संग ना साथी मेरा था,
में तन्हा रस्ता सूना था,

पलकों को मैंने मूँद लिया,
एक डाल पे जा कर मै बैठी,

कुछ सोचा जीवन तो ऐसा है,
हर पल चलते ही रहना है,

जो ठहर गया वो खोता है,
जो चलता है वो पता है,

नव जीवन की इक डोर बंधी,
मै फिर से उड़ने को उतरी,

है हर्ष नया उल्लास नया,
अब लोगों से क्या डरना है,

वो भी मांटी मै भी मांटी,
वो भी इक दिन मिट जाना है,

मै राह चलूँ चलती रहूँ,
अब दिन ना कोई रात लगे

मै पंछी अपनी राह की,
मुझको क्या करना इधर उधर ............ (इंदु)

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