क्या तितलियों के रंग में
डूब जाने का मन करता है ?
पंछियों की तरहा दूर आकाश
में उड़ने लगती हैं ख्वाइशें ?
डूब जाने का मन करता है ?
पंछियों की तरहा दूर आकाश
में उड़ने लगती हैं ख्वाइशें ?
मैं को जानती नहीं मैं
और उसमे खो जाती हूँ ?
लब मेरे हिलते हैं और
बातें बस उसकी होती हैं ?
बारिश की बूँदें गिरतीं हैं सर्द
फिर शोले बन जाती हैं ?
बदन मेरा होता है पर
महक उसकी आती है ?
बिना कहे उसके क्या
मै सब समझ गयी ?
क्या कोई शब्द ज़रुरी
नहीं है बयाँ करने को ?
बिना संगीत मेरे कदम
झूम से क्यूँ गए ?
बिना बात ही तेरे नाम
से ऑंखें क्यूँ शरमाई हैं ?
ये भी क्या बात हुई, खुद से इतना अनजाने कोई कैसे हो सकता है,
खेर, मै तो प्यार की परिभाषा जानती नहीं ........(इन्दु लडवाल)
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