Sunday, 12 August 2012

मै खुश हूँ ...

कभी अताह सागर भी
कम था पीने को
आज मिल जाये दो बूँद जीने की
मै खुश हूँ .......

कभी आंगन की
क्यारियों में बीता बचपन
...
आज झांकते खिड़की से दो पत्ते
में खुश हूँ........

रोने की वजह ना थी
ना खुश होने की कोई
आज वजहों से दूर चली जाऊँ
मै खुश हूँ........

महफिलों की कमीं ना थी
जहाँ बैठे दो यार रंग था
आज बेरंग हो जाऊँ
मै खुश हूँ.......

कुछ पाने की चाह में
टूटे-छूटे कई रिश्ते
आज तन्हा भी हो जाऊँ
मै खुश हूँ ......

बेवजह ही दोष क्यूँ देना
किसी अपने पराये को
मैं खुद हूँ गुनेहगार
मै खुश हूँ .................(इन्दु लडवाल)

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