अन्जाने रास्तों पर
चलने का मुझको डर है
थामा है हाथ तेरा
रस्ता गम-ए-नज़र है.......
मेरे महबूब किस नाम
से करूँ बयाँ तुझको
तू तो हर चीज़ में
हर शख्स में समाया है......
चलने का मुझको डर है
थामा है हाथ तेरा
रस्ता गम-ए-नज़र है.......
मेरे महबूब किस नाम
से करूँ बयाँ तुझको
तू तो हर चीज़ में
हर शख्स में समाया है......
अब तो ख्वाबों की
जरुरत भी नहीं लगती
सुबह से शाम तक
तू मेरा हमसाया है........ (इन्दु लडवाल)
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