Monday 13 August 2012

मै जिन्दा हूँ

साँसों का आना जाना ही जीवन है
तो हाँ मै जिन्दा हूँ ...

लबों का मुस्कुराना ही गर हँसी है
तो हाँ मै खुश हूँ ...

महक दिल जलने की गर खुशबू है
तो हाँ मै गुलशन हूँ ...

ढहर जाना ही गर मेरा मुकद्दर है
तो हाँ मै मंज़िल हूँ ...

खुदी को रोंदना गर मेरी फितरत है
तो हाँ मै ज़ालिम हूँ ...

साँसों का आना जाना ही जीवन है
तो हाँ मै जिन्दा हूँ ...

आने वाला है .....

सब दुःख हरनी मंगन करनी
वो आनेवाला है ......

सबको नाच नचाने
वो आने वाला है ....

बंसी बजैया गौ चरैया
आने वाला है .....

मन को भाने मीत बनाने
वो आने वाला है .....

सब मिलकर मचाओ धूम
वो आने वाला है ......

नन्द का लाला मुरलीमनोहर
आने वाला है .......

झाँकता एक साया ,,,

भूले ही कभी कोई इस घर तक आया होगा
आवाज़ लगाई होगी दरवाज़ा खटखटाया होगा
उन दस्तकों से कोई जवाब ना पाया होगा
मायूस वो फिर अपने रास्ते लौट आया होगा

इस घर में रहती तन्हाई का आलम-ए-गम
उस अंजान के कदमों से वाबस्दा नहीं होगा
यूँ तो खिड़कियों से रोज़ झाँकता एक साया (बाहर को)
जाने किस चेहरा-ए-खास को पहचानता होगा ........(इन्दु लडवाल)

अंतर-आत्मा

रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

आंधियां चलती रहीं
तूफान सा आता राह
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

उस शोर का पीछा भी किया
हाथ कुछ नहीं मेरे आया
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा .......

आसमान में दूर कहीं
एक कोना गरजता रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

जाने क्या था उसकी बात में
मैं सोच में डूबी रही
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

अँधेरों में दूर सदाएँ आती
रहीं दिल खामोश रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......

कुछ चटकी दीवारें सी
कुछ भूला सा एहसास रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ........(इन्दु लडवाल)

थामा है हाथ तेरा..

अन्जाने रास्तों पर
चलने का मुझको डर है
थामा है हाथ तेरा
रस्ता गम-ए-नज़र है.......

मेरे महबूब किस नाम
से करूँ बयाँ तुझको
तू तो हर चीज़ में
हर शख्स में समाया है......

अब तो ख्वाबों की
जरुरत भी नहीं लगती
सुबह से शाम तक
तू मेरा हमसाया है........ (इन्दु लडवाल)

बूँदों की तरहा

कभी तुम भी चले आया करो
सावन की बूँदों की तरहा
भीगा दो तन मिटा दो
विरहा की अग्नि तपाती है ..

कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये ....

कभी कभी यूँ ही
दिल खाली रखना चाहिये .......

कोई नश्तर-ए-दुश्मनी
चुभा जाता है कभी
तो कोई प्यार से
ज़ख्म भर जाता है
ऐसे रिश्तों से दूर रहना चाहिये
कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये ....

वक्त नहीं मिलता
खुद को सोचने का
और कभी बेवक्त ही
तन्हाइयाँ घेर लेती हैं
ऐसे लम्हों से दूर रहना चाहिये
कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये ...

रो रो के कभी हमने
ऑंखें सुजाई हैं
कभी हँसते हँसते
दर्द की पीड आई है
ऐसे जस्बातों से दूर रहना चाहिये
कभी कभी दिल खाली रखना चाहिये .......(इन्दु लडवाल)