तमन्नाएँ और आरजू खत्म नहीं होतीं,
जितना भी मिल जाये ये दफ्न नहीं होती,
हूँ तो आखिर इन्सा ही मजबूर हूँ क्या करूँ,
जितना भी रोकूँ ये आवाज़ें बंद नहीं होतीं ...
जितना भी मिल जाये ये दफ्न नहीं होती,
हूँ तो आखिर इन्सा ही मजबूर हूँ क्या करूँ,
जितना भी रोकूँ ये आवाज़ें बंद नहीं होतीं ...
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