Wednesday 18 April 2012

ऊपर से पत्थर अन्दर फूल

मत पूछ की हाले-दिल बहुत कमज़ोर हुआ करते हैं,
दीखते हैं ऊपर से पत्थर अन्दर फूल हुआ करते हैं,

जो रास्ता लगता है मुझे बहुत ही अकेला,
हाथ में लिए खंजर लोग इंतजार करते हैं,

दिल के ज़ख्म जब किसी के सामने खुलते है,
तालियाँ बजती हैं लोग वाह वाह करते हैं,
 

तुम ही कहो कैसे मै निभाऊं इस हालत में,
छेद हो जो कपड़ो में तो ये झाँका करते हैं,

इनसे तो भले कब्रिस्तान के मुर्दे हैं शायद,
हम रोते हैं तो वो कहकशे नहीं करते,

हर बात का चाहिए इनको जवाब क्यूँ,
हम तुमसे तो कोई भी वास्ता नहीं करते,

जो हमें लगता की हम लुट जायेंगे यहाँ,
तेरे शहर में हम आसरा नहीं करते,

ना नज़रों की शराफत ना दिल में है खौफ,
होता जो हमें इल्म तो हम यहाँ आया नहीं करते ...

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