Wednesday 18 April 2012

मुलाकात



 
आज मुलाकात हो गयी उनसे,
वो वही थे पर हम बदल गए,
उनके देखने का अंदाज़ वही था,
पर निगाहें हमारी बदल गयीं,

हम तो अब भी गुलिस्तान हैं,
सेहरा में वो उजड़ गए,
हमने फूलों को सजाया,
और उनके लिए कांटें पिरो गए,  

ज उनको खुलकर देखा हमने,
बंदगी से सर झुका दिया,
इतने मिले उनके हालत हमसे,
हम हैं वो और वो हम ऐसा लगा,

खोला जो दिल उनका,
मिले कुछ पुराने किस्से,
कुछ हमारी शिकायतें,
और कुछ बेवफाई,

सहेज कर रखतें हैं वो,
तमाम उम्र का हिसाब,
किसने दिया कितना दिया,
ये उनको नहीं है याद,

मेरे क़दमों की छाप,
आज भी है उनके दर पे,
कितने बरसों से उनने,
सफाई नहीं की घर की,

जिस आईने में उनने,
देखा था मुझको,
मुद्दतों बाद भी वो तस्वीर,
कायम है अब तक,

जिस जगह बैठे थे,
साँथ हम कभी,
उनने यादों की एक,
चादर सी डाल रक्खी है,

दी कसम हमने थी कभी,
उनको न रोने की,
उनने वादा तो किया पूरा,
ऑंखें पथरा सी रक्खी हैं,

मुस्कुरातें हैं मगर,
वो ख़लिश झलक जाती है,
जो दिन गुज़रे बिना मेरे,
वो कमी तडपाती हैं,

आज मुलाकात हो गयी उनसे,
वो वही थे पर हम बदल गए,
उनके देखने का अंदाज़ वही था,
पर निगाहें हमारी बदल गयीं,.........................(इंदु)

तेरे बिन जीना



 
तुम तो कहते थे की वक़्त कट जायेगा,
पर ये न कहा की तेरे बिन जीना है,
हालाते आंधियों को सहना है,
पर अकेले तेरे बिन जीना है,

कहाँ से लाऊं तेरा जैसा होंसला,
दर्द में जीने के वो फलसफे,
कुछ कही अनकही लोगों की,
सहना और चुप रहना,

कहाँ से लाऊं हंसी तेरी वो,
कहाँ से लाऊं रोना,
चुप चुप के वो इशारे करना,
जुबाँ से कुछ न कहना,

पलकों पर तेरी पलकें गिरना,
धड़कन का वो मचलना,
साँसों की हर एक महक को,
सीने से लगा कर रखना,

हँसती हूँ मै तन्हाई में,
सोच के तेरी बातें,
जीना है बस अब है जीना,
पर अकेले तेरे बिन जीना ...............................(इंदु)

साँझ





वो रात की चादर ओड़े अक्सर आती है,
मन के विचलित भावों को मेरे जगाती है,
क्या कहा किया मैंने दिनभर वो पूछे है,
खुद को कितना मजबूर किया वो पूछे है,

वो पूछे है ................(साँझ)

इस दुनिया के रेले में कब तक बहुंगी मै,
कब तक मृगतृष्णा के पीछे पडूँगी मै,
सीने में चुभती है अब ये विस्तृत ख़ामोशी,
कब साँझ तले मै लौट सकूँ इस तूफां से..........................(इंदु)

ऊपर से पत्थर अन्दर फूल

मत पूछ की हाले-दिल बहुत कमज़ोर हुआ करते हैं,
दीखते हैं ऊपर से पत्थर अन्दर फूल हुआ करते हैं,

जो रास्ता लगता है मुझे बहुत ही अकेला,
हाथ में लिए खंजर लोग इंतजार करते हैं,

दिल के ज़ख्म जब किसी के सामने खुलते है,
तालियाँ बजती हैं लोग वाह वाह करते हैं,
 

तुम ही कहो कैसे मै निभाऊं इस हालत में,
छेद हो जो कपड़ो में तो ये झाँका करते हैं,

इनसे तो भले कब्रिस्तान के मुर्दे हैं शायद,
हम रोते हैं तो वो कहकशे नहीं करते,

हर बात का चाहिए इनको जवाब क्यूँ,
हम तुमसे तो कोई भी वास्ता नहीं करते,

जो हमें लगता की हम लुट जायेंगे यहाँ,
तेरे शहर में हम आसरा नहीं करते,

ना नज़रों की शराफत ना दिल में है खौफ,
होता जो हमें इल्म तो हम यहाँ आया नहीं करते ...

इश्क़

ये मुर्दे से पड़े लोगो कहाँ से आए हैं,
ना आँखों में पानी है और ना जवानी है,
सूखे पत्तों से बिखरे हुए हैं ये,
सीने में ना धड़कन है ना खून में रवानी है,

कुछ सुना किया करते थे हम,
ये लोग हैं वो जो इश्क़ में थे ...

tufan



आँखों में नमी थी, और दिल में तूफान,
रो रहीं थी यादें और गुम थे जस्बात,
फिर भी हमने हालत को समझाया कई बार,
यही है ज़िन्दगी ऐसे ही जीते हैं इसको यार,

कहीं देख रेला चला जा रहा है,
खुशियों की लड़ी है दिल में बहार,
कहीं ग़म की चादर फैलाये है पैर,
टूटे हैं दिल बिखरे हैं ज़ार ज़ार,

 गीत कोई गाऊँ ये सोच के रुक जाऊं,
है अकेला रास्ता कौन सुनेगा,
रूठ भी जाऊं पर क्यूँ मै इतराऊँ,
हँस दो एक बार ये कौन कहेगा,

कितना है ग़म और कितना आराम,
किसको ख़बर कब ढल जाये ये शाम,
ज़ख्म तो जीवन की अनमोल दावा है,
पूछो ये उससे जिसने दर्द पिया है..........(indu)