Sunday 22 January 2012

डर लगता क्यूँ है




हम भाग रहे हैं किस से, कौन है पीछे,
अपना ही तो है साया,  फिर भी डर लगता क्यूँ है,


कोई बात कहते कहते, सिने में दफ़न हो जाती है,
अपने ही तो हैं लोग, फिर भी डर लगता क्यूँ है,

दिल बरा मासूम है, उम्मीदों पे खुश हो जाता है,
दर्द का कोई गम नहीं, फिर भी डर लगता क्यूँ है,

काँच की दीवार को, तोडना मुश्किल नहीं,
जख्म भी हैं अच्छे, फिर भी डर लगता क्यूँ हैं,

हम नहीं रखते किसी को, बांध कर अपने बगल,
हैं बड़े मज़बूत रिश्ते, फिर भी डर लगता क्यूँ है,

हम भाग रहें हैं किस से, कौन है पीछे,
अपना ही तो है साया, फिर भी डर लगता क्यूँ है......  ( इंदु)

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता | सुन्दर भावों से पिरोई हुई | आनंदमय |


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    Tamasha-E-Zindagi
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