रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
आंधियां चलती रहीं
तूफान सा आता राह
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
आंधियां चलती रहीं
तूफान सा आता राह
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
उस शोर का पीछा भी किया
हाथ कुछ नहीं मेरे आया
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा .......
आसमान में दूर कहीं
एक कोना गरजता रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
जाने क्या था उसकी बात में
मैं सोच में डूबी रही
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
अँधेरों में दूर सदाएँ आती
रहीं दिल खामोश रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ......
कुछ चटकी दीवारें सी
कुछ भूला सा एहसास रहा
रात भर कुछ खटकता रहा
जाने क्या करवटें बदलता रहा ........(इन्दु लडवाल)
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