कुछ अनदेखी कुछ जानी सी, कुछ गैर सी कुछ अपनी,
आज़ाद कोई, कुछ बंधन में, सूरत दिखती हैं राहों में,
किसी की ऑंखें सर्द पड़ी है, कोई है विरानो में ग़ुम,
है कैसी यह तृष्णा, जो बुझ न पाई है अब तक,
हँसी किसी के होंटों पर, किसी के लब हैं सूखे से,
कहीं है दो बूंदों की कहानी, कहीं है सागर भी कम,
उलझा बैठा है कोई, अपनी गुत्थी को सुलझाने में,
और किसी को सरल मिला है, जीवन व्यापन करने को,
ईश्वर के चरणों में कोई, धुनी रमाये बैठा है,
किसी के जीवन में धन ही, ईश्वर बन बैठा है......(by Indu)